lok janshakti party

लोक जनशक्ति पार्टी का गठन

पद्म भूषण रामविलास पासवान 13 अक्टूबर 1999 को बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में दूर संचार विभाग के कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे। उस वक्त वह जनता दल के सांसद थे। उन्होंने हाजीपुर सीट से भारी मतों से जीत हासिल की थी। उनके साथ रामचंद्र पासवान भी समस्तीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुके थे। अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाए गए थे। एक तरफ जनता दल के भीतर खलबली मची थी, दूसरी तरफ उसमें रहते हुए रामविलास पासवान के मन में गरीबों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विकास को लेकर बेचैनी बनी हुई थी। वह निचले तबके की तरक्की के लिए संघर्षरत थे।अपनी बात को सरकार तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे। इसके लिए वह चाहते थे कि उनके पास ज्यादा से ज्यादा सांसद और विधायक हों।

दरअसल, पासवान जनता दल के लंबे अनुभव से दो चीज स्पष्ट तौरपर समझ गए थे कि अपने समर्थकों को टिकट मिलने का पावर उनके पास तभी आ सकता है जब उनकी खुद की पार्टी हो। दूसरे राजग या किसी गठबंधन के मंच के बदले सीधे अपनी खुद रख सकें। पासवान ने खुद की पार्टी बनाने का फैसला लिया और उन्होंने 28 नवंबर 2000 को अपने नए राजनीतिक दल ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ के गठन की घोषणा दिल्ली के रामलीला मैदान से कर दी। वह दिन रामविलास पासवान समर्थकों के लिए ऐतिहासिक था। रामलीला मैदान में जबरदस्त भीड़ जुटी थी। भाव्य जनसभा में भारी भीड़ ने नई पार्टी की घोषणा का स्वागत तालियों की गड़गड़ाहट के साथ किया था। पासवान के साथ मंच पर जनता दल (संयुक्त) के अन्य सांसदों में जयनारायण निषाद, रमेश जिगजिगानी और रामचंद्र पासवान थे। रमेश जिगजिगानी कर्नाटक से थे, जबकि बाकी सारे सांसद बिहार के ही थे। इनके अलावा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर, दिल्ली के विधायक रामवीर सिंह बिधूड़ी, रामाकिशोर सिंह, कैप्टन भोपाल सिंह भी मौजूद थे।
अपने अध्यक्षीय भाषण में पासवान ने मंच से पार्टी की सैद्धांतिक आधार को स्पष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘लोक जनशक्ति पार्टी का मूल सिद्धांत ‘सामाजिक न्याय’ होगा और यह पार्टी देश की उस आबादी के लिए प्रतिबद्ध होगी, जो समाज की अंतिम सीढ़ी पर बैठा है। जो गरीब, पिछड़े, दबे कुचले हैं उन्हें यह पार्टी उनका सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए काम करेगी। यह गरीब तबका किसी भी धर्म का हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी पेशे, व्यवसाय, आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा हो। इसी के साथ उन्होंने नारा दिया, "हम उस घर में दिया जलाने चले हैं, जिस घर में सदियों से अंधेरा है "

उन्होंने यह भी कहा कि ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ के संघर्ष का रास्ता संसदीय लोकतंत्र के तहत होगा। आंदोलन के जरिए गरीबों की आवाज बुलंद करने के साथ वह विधायिका का रास्ता अपनाएगी ताकि संसद से लेकर राज्य की विधानसभाओं में पार्टी के चुने प्रतिनिधि शोषित, दलित, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के अधिकार से जुड़े मुद्दे को जोरशोर से उठा सकें, सरकार और देश का ध्यान उस ओर आकृष्ट कर सकें।

लोक जनशक्ति पार्टी के गठन के बाद पार्टी का अनूठा संविधान बनाया गया। उसमें इन्हीं सिद्धातों को जगह दी गई। प्रमुखता से पार्टी संविधान के उद्देश्य की शुरुआत में यह कहा गया है, "पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान में पूर्ण आस्था तथा निष्ठा रखेगी, और समाजवाद, धर्म निरपेक्षता एवं लोकतंत्र के सिद्धांतों पर भारत की एकता, प्रभुसत्ता और अखंडता बनाए रखेगी।"

पार्टी संविधान में पार्टी के लक्ष्य को भी स्पष्ट किया गया है। यह कहा गया है कि ‘लोक जनशक्ति पार्टी गरीबों के हाथ में सत्ता हस्तांतरण के लिए कृत संकल्प है। पार्टी जाति, धर्म के विवादों से ऊपर उठकर एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करेगी जो आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक एवं हर तरह के शोषण से मुक्त हो।’ पार्टी गठन के बाद सांगठनिक ढांचे का पहला चुनाव हुआ। उसमें रामविलास पासवान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। दूसरे पदाधिकारियों में तब संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष कैप्टन जयनारायण निषाद, मुख्य महासचिव रमेश जिगजिगानी, उपाध्यक्ष अब्दुल गफूर और रमेश प्रसाद सिंह थे।

पार्टी गठन के बाद बड़ी जिम्मेदारी इसे सफलता पूर्वक लेकर चलाने की थी। इसे लेकर पासवान को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वे चुनौती को जानते थे, इसलिए अगले दो साल तक वे पार्टी को अपने पैरों पर खड़ी करने में जीजान से जुटे रहे। इस संबंध में उन्हें दो सकारात्मक पक्ष का लाभ मिला। पहला पक्ष उनका अपना वोट आधार बना, तो दूसरा पक्ष दलित सेना के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर कार्यकर्त्ताओं का प्रतिबद्ध काडर का था। दलित सेना ने तो एक तरह से नई पार्टी के लिए रीढ़ की तरह सक्रिय भूमिका निभाई।

इसी के साथ पासवान ने दो लक्ष्य निर्धारित किए। पहला लक्ष्य था पार्टी को संगठनात्मक स्तर पर मजबूत बनाना और उसका विस्तार करना। इसकी बदौलत उनकी राजनीतिक सक्रियता पहले से कई गुना बढ़ गई। अपनी सक्रियता बढ़ा दी। हर दूसरे-तीसरे दिन उनका दिल्ली से बाहर दौरा होने लगा। कभी-कभी एक साथ कई दिन दिल्ली के बाहर एक जगह से दूसरे जगह पार्टी कार्यक्रमों में जाना हुआ। दलित सेना की दूसरे राज्यों में पहले से जमीनी पकड़ बनी हुई थी। उसके कार्यकर्त्ता हर जगह थे।

उनके अलावा उनके वे समर्थक भी लोजपा को खड़ा करने में पासवान के साथ जुड़ गए जो उनकी वजह से अभी तक जनता दल में थे। उन्होंने संयुक्त सोशिलिस्ट पार्टी से जो कुछ सीखा—समझा था उसका उपयोग लोजपा के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने में किया। पुरानी पार्टी प्रणाली के ढर्रे पर कार्यकर्त्ता सम्मेलन, प्रशिक्षण शिविर, जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित करवाना शुरू कर दिया। इनके अलावा विभिन्न मुद्दों पर सम्मेलनों, जनसभाओं, रैलियों, धरने, प्रदर्शन का आयोजन जिस दिलचस्पी से पासवान करते दिखाई दिए वह आश्चर्यजनक था। वर्ष 2000 की राजनीति छठे-सातवें दशक के राजनीति से अलग थी।

शिविरों, सम्मेलनों से लेकर उनमें पारित किए जाने वाले प्रस्तावों के सहारे पार्टी को पहचान दिलवाने में काफी मदद मिली। पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने की कोशिश के साथ जो भी चुनाव आए उनमें लोजपा के उम्मीदवार खड़े किए गए। जब तक राजग के साथ रहे और वाजपेयी सरकार में मंत्री थे तब तक धरने, प्रदर्शन, आंदोलनों का मुख्य ठिकाना बिहार बना रहा। इस तरह पार्टी की लोकप्रियता दो साल में ही काफी हो गई।
मौजदूा समय में इस पार्टी का नया नाम लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) है, जिसका चुनाव चिन्ह चुनाव आयोग से हेलीकॉप्टर मिला है, जबकि पहले बंगला था। पार्टी के झंडे को नीला, लाल और हरा की एकसमान पट्टियों से दर्शाया गया है। पार्टी की कमान राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पसवान के हाथ में है, जबकि इसके प्रधान महासचिव अब्दुल खालिक हैं। पार्टी के विभिन्न राष्ट्रीय प्रकोष्ट इस प्रकार हैं—

1।युवा प्रकोष्ठ 2। अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ 3। महिला प्रकोष्ठ,4। लेबर प्रकोष्ठ, 5। लीगल प्रकोष्ठ, 6। किसान प्रकोष्ठ, 7 खेल एवं सांस्कृतिक प्रकोष्ठ, 8। छात्र प्रकोष्ठ, 9। अनुसूचित जाती—जनजाति प्रकोष्ठ, 10। आईटी प्रकोष्ठ, 11। अतिपिछड़ा प्रकोष्ठ, 12। पंचायती राज प्रकोष्ठ, 13 चिकित्सा प्रकोष्ठ।14। बिहार कर्मचारी यूनियन प्रकोष्ठ। इसके अलावा सभी प्रदेशों में अध्यक्ष हैं।



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